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Shiv Purana Part 175: धात्री, मालती और तुलसी की उत्पत्ति की कहानी क्या है? विष्णु को कैसे हुआ तुलसी से प्रेम

jeevanjali Published by: निधि Updated Fri, 15 Mar 2024 05:56 PM IST
सार

Shiv Purana शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि भगवान् शिव ने जलंधर का वध कर दिया जिससे इस संसार में शांति व्याप्त हो गई।

Shiv Purana शिव पुराण
Shiv Purana शिव पुराण- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Shiv Purana शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि भगवान् शिव ने जलंधर का वध कर दिया जिससे इस संसार में शांति व्याप्त हो गई। जलंधर के वध से प्रसन्न हुए देवताओं ने भगवान् शिव को प्रणाम किया और उनकी स्तुति की। इसके बाद देवताओं ने भगवान् शंकर से श्री विष्णु की दशा का वर्णन किया। वो शिव से बोले कि विष्णु ने वृंदा को मोहित तो कर लिया लेकिन काम से पीड़ित होने के कारण उन्होंने उसकी चिता की भस्म धारण कर ली है और माया से विमोहित हो गए है। हमारे लाख समझाने के बाद भी वो कुछ भी नहीं समझ रहे है। शिव ने कहा, सम्पूर्ण लोकों को मोहित करने वाली माया दुस्तर है। उससे कोई पार नहीं पा सकता है।

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आप लोग विष्णु का मोह दूर करने के लिए शिवा नामक माया के पास जाइये। वह मेरी ही शक्ति है, अगर वो आपसे संतुष्ट हो गई तो आपका काम अवश्य ही हो जाएगा। शंकर की आज्ञा के अनुसार इंद्र आदि देवता मन से भक्तों को सुख देने वाली मूल प्रकृतिदेवी की आराधना करने लगे। इसके बाद देवताओं ने अपनी कांति से सभी दिशाओं को व्याप्त किए हुए एक तेजोमण्डल को आकाश में देखा। उसके माध्यम से एक आकाशवाणी हुई। वो बोली, मैं तीन प्रकार के गुणों के द्वारा तीन अलग अलग रूप में स्थित हुई। रजोगुण से गौरी, सत्वगुण से लक्ष्मी और तमोगुण से सुराज्योति के रूप में स्थित रहती हूं।

इसलिए आप लोग मेरी आज्ञा से उन देवियों के पास जाइये और वो प्रसन्न होकर आपके मनोरथ को अवश्य ही पूर्ण करेगी। उस वाक्य से प्रेरित होकर देवताओं ने गौरी, लक्ष्मी और सुरादेवी को प्रणाम किया और उनकी स्तुति की। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर वो देवियां अपने अद्भुत तेज से सभी दिशाओं को प्रकाशित करती हुई प्रकट हुई। उन्होंने देवताओं को अपना अपना बीज दिया और कहा कि जहां विष्णु विराजमान है उसके नीचे इन बीज को बो देना है। इसके बाद देवता उन बीजों को लेकर वहां गए जहां श्री विष्णु विराजमान थे। उन देवताओं ने वृंदा की चिता के नीचे भूतल पर उन बीज को बो दिया।

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उन बीजों से धात्री, मालती और तुलसी नामक तीन वनस्पति प्रकट हुई। धात्री के अंश से धात्री, महालक्ष्मी के अंश से मालती और गौरी के अंश से तुलसी हुई जो क्रमश: तम, रज और सत्व का गुण लिए हुए थी। तब स्त्री रूपिणी उन वनस्पतियों को देखकर विष्णु का मोह भंग हुआ। वो उनके प्रेम की याचना करने लगे। धात्री और तुलसी ने भी राग पूर्वक उनका अवलोकन किया। लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न मालती को उनसे ईर्ष्या हुई इसलिए वह बर्बरी नाम से पृथ्वी पर विख्यात हुई और धात्री एवं तुलसी विष्णु को प्रिय हुई।

कार्तिक मास में जो जीवात्मा धात्री और तुलसी विष्णु को भेंट करती है उसे परम गति प्राप्त होती है। इसमें भी तुलसी अति उत्तम जाननी चाहिए। मोह भंग हो जाने के बाद शिव की प्रेरणा से श्री विष्णु बैकुंठ धाम को चले गए जिससे देवताओं को राहत मिली। विष्णु और तुलसी का यह आख्यान समस्त कामनाओं की पूर्ति करने वाला है। जो भक्ति से इस कथा को पढता और सुनता है वो परम गति को प्राप्त करता है इसमें कोई संशय नहीं है।

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