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Shiv Purana Part 171: गणेश, कार्तिकेय, नंदी और वीरभद्र पर भी भारी पड़ा जलंधर! जानिए आगे क्या हुआ

jeevanjali Published by: निधि Updated Tue, 12 Mar 2024 02:31 PM IST
सार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि शिव के मुख से एक ज्वाला प्रकट हुई जिसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य को गायब कर दिया। वही दूसरी ओर गणेश, नंदी और कार्तिकेय जैसे योद्धा जलंधर की सेना से भिड़ गए।

शिव पुराण
शिव पुराण- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि शिव के मुख से एक ज्वाला प्रकट हुई जिसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य को गायब कर दिया। वही दूसरी ओर गणेश, नंदी और कार्तिकेय जैसे योद्धा जलंधर की सेना से भिड़ गए। कालनेमि का युद्ध नंदी से, शुम्भ का युद्ध श्री गणेश से और निशुम्भ का युद्ध कार्तिकेय जी से होने लगा। शिव की सेना और असुर जलंधर की सेना के बीच हो रहे इस भीषण युद्ध में वीरभद्र भी आ गए। इसके बाद तो शिव जी की सेना दैत्यों की सेना पर भारी पड़ने लगी और कालनेमि, शुम्भ और निशुम्भ पराजित कर दिए गए। ये सब देखकर जलंधर को क्रोध आया और वो खुद रथ पर सवार होकर शिव गणों की सेना के मध्य आ गया।

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यह देखकर जो दैत्य पराजित हो गए थे वो भी उत्साह के साथ युद्ध के मैदान पर वापिस आ गए। जलंधर ने नंदी और गणेश जी पर पांच और वीरभद्र की ओर बीस बाणों से प्रहार किया। असुर सेना और देवताओं की सेनाओं के रथों, हाथी, घोड़े, शंख तथा भेरी से युद्धभूमि गुंजायमान हो रही थी। इसके बाद वीर कार्तिक ने अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए जलंधर पर प्रहार किया। इससे वो दैत्य पृथ्वी पर गिर पड़ा लेकिन शीघ्र ही उठकर फिर युद्ध को तत्पर हो गया और उसने अपनी गदा का प्रहार वीर कार्तिकेय के हृदय पर किया। ब्रह्मा के दिए वरदान का कार्तिक ने मान रखा और वो उस गदा के प्रहार से पृथ्वी पर गिर पड़े।

उसी क्षण नंदी को भी घायल देखकर श्री गणेश जी ने अपने परशु से उस गदा को काट दिया। तब दैत्य जलंधर ने श्री गणेश को अपनी शक्ति के प्रहार से पृथ्वी पर गिरा दिया और दूसरे रथ पर सवार होकर वीरभद्र की ओर दौड़ने लगा। जलंधर ने वीरभद्र पर बाणों की बौछार कर दी। यह देखकर वीरभद्र भी क्रोध से भर उठे और उन्होंने असंख्य बाणों से जलंधर के बाणों को काट दिया और अपने महान बाण से उस पर प्रहार किया। दोनों योद्धाओं का तेज सूर्य के समान था और वो दोनों अनेक प्रकार के अस्त्र और शस्त्र से बहुत समय तक परस्पर युद्ध करने लगे।

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वीरभद्र ने अपने बाणों से उस दैत्य के रथ के घोड़ों को मार गिराया। इसके बाद जलंधर परिघ अस्त्र लेकर वीरभद्र के समीप आ गया। वीर समुद्र पुत्र जलंधर ने उस परिघ अस्त्र से वीरभद्र के सिर पर प्रहार किया और उसी क्षण वीरभद्र का सिर फट गया। रक्त की धार बहने लगी और वो भूमि पर गिर पड़ा। वीरभद्र को इस हालत में देखकर सभी शिवगण निराश हो गए और अपने प्रभु शिव के पास आकर उनको पूरा वृंतात कह सुनाया। इसके बाद शिव ने खुद युद्ध में जाने का निर्णय लिया।
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