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Shiv Purana Part 169: अपने ही हाथ पैर के मांस का भक्षण क्यों करने लगा पृथ्वी से प्रकट हुआ पुरुष

jeevanjali Published by: निधि Updated Sun, 10 Mar 2024 01:00 PM IST
सार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, नारद जी ने जलंधर को पार्वती को प्राप्त करने के लिए उकसाया और आकाश मार्ग से चले गए। इसके बाद, दैत्य जलंधर पार्वती को प्राप्त करने के लिए व्याकुल हो उठा।

शिव पुराण
शिव पुराण- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, नारद जी ने जलंधर को पार्वती को प्राप्त करने के लिए उकसाया और आकाश मार्ग से चले गए। इसके बाद, दैत्य जलंधर पार्वती को प्राप्त करने के लिए व्याकुल हो उठा। काल के अधीन होने से उसकी बुद्धि नष्ट हो गई और मोह में डूबे हुए उस दैत्य ने अपने दूत सिंहिका के पुत्र राहु को बुलाया। उसने राहु से कहा कि कैलास पर्वत पर शिव नाम का एक योगी रहता है। उससे जाकर कहो कि उसे स्त्री रत्न की कैसी आवश्यकता है? जब समस्त संसार के स्वामी दैत्य जलंधर है तो तुम इस स्त्री रत्न का क्या करोगे? इसलिए यह स्त्री रत्न मेरे स्वामी और दैत्य राज जलंधर को दे दो।

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अपने स्वामी की इन बातों को सुनकर और समझकर राहु कैलास पर्वत पर गया। वहां सबसे पहले उसकी नंदी से भेंट हुई। उन्होंने उसे कैलास पर्वत के भीतर प्रवेश करवाया। वहां राहु ने साक्षात् देवों के देव महादेव प्रभु शंकर को देखा। उनका स्वरुप अत्यंत दिव्य था और उन्होंने पूरे शरीर पर भस्म का लेप लगाया हुआ था। राहु ने सबसे पहले तो शिव जी को प्रणाम किया और फिर अपने स्वामी की बात को याद करके शिव जी से इस प्रकार के वचन कहें।

राहु ने शिव जी से कहा, मैं तीनों लोकों के अधिपति दैत्य राज जलंधर का दूत हूं। मेरे स्वामी ने आपसे कहा है कि आप तो दिगम्बर है फिर पार्वती आपकी भार्या कैसे हो सकती है? उनके अनुसार इस स्त्री रत्न पर उनका अधिकार है। मेरे स्वामी ने आपसे कहा है कि आप अपना स्त्री रत्न उनको दे दे। जब राहु शिव जी से इस प्रकार बात कर रहे थे उसी समय पृथ्वी के मध्य से एक महा भयंकर पुरुष प्रकट हो गया। उसका मुख सिंह के समान था और वो तुरंत ही राहु की ओर झपटा। राहु से जब देखा कि वो उसे खाने के लिए दौड़ रहा है तो वहां से राहु भागने लगे लेकिन उस पुरुष ने उसे पकड़ लिया।

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अपनी मौत को आया जानकार राहु ने भगवान् शंकर से उनके प्राण बचाने की विनती की। महादेव ने उस पुरुष से कहा कि वो राहु को छोड़ दे। उस पुरुष ने शिव जी की आज्ञा को मानकर राहु को तो छोड़ दिया लेकिन उसे भूख कष्ट दे रही थी। उसने शिव जी से कहा कि प्रभु आप बताए कि मेरा भोजन क्या होगा? महेश्वर ने कहा कि अगर तुम्हे इतनी ही भूख लगी है तो तुम अपने हाथ पैरों के मांस का ही भक्षण कर लो। शिव जी के ऐसा कहने पर वो अपने पुरे शरीर के मांस का भक्षण करने लगा।

जब सिर्फ उसका सिर बचा तो शिव जी उस पर बेहद प्रसन्न हुए। उन्होंने उस पुरुष से कहा कि तुमने मेरी आज्ञा का निष्ठा से पालन किया है इसलिए तुम सभी दुष्टों के लिए भयंकर महागण हो और आज से मेरे द्वारपाल हो। इस संसार में अब मेरी पूजा के साथ तुम्हारी भी पूजा होगी और इस संसार में तुम 'कीर्तिमुख' के नाम से प्रसिद्द होओगे। शिव जी से इस प्रकार का वरदान पाकर वह पुरुष बेहद प्रसन्न हो गया और शिव जी के द्वार पर रहने लगा। संतों का यह मत है कि जो शिव की पूजा से पहले 'कीर्तिमुख' की पूजा नहीं करते उनकी पूजा व्यर्थ हो जाती है।

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