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Shiv Purana Part 168: नारद जी ने जलंधर से कही पार्वती को प्राप्त करके करने की बात,जानिए आगे क्या हुआ

jeevanjali Published by: निधि Updated Sun, 10 Mar 2024 12:42 PM IST
सार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि दैत्य राज जलंधर को श्री विष्णु पराजित नहीं कर सके और वो स्वयं अपने देवताओं और लक्ष्मी जी के साथ उसके नगर में रहने के लिए चले गए।

शिव पुराण
शिव पुराण- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि दैत्य राज जलंधर को श्री विष्णु पराजित नहीं कर सके और वो स्वयं अपने देवताओं और लक्ष्मी जी के साथ उसके नगर में रहने के लिए चले गए। इस प्रकार जब जलंधर धर्मपूर्वक राज्य करने लगा तो उसके प्रभाव में रहकर देवता बेहद कष्ट महसूस करते थे। उन्हें यह सोचकर बेहद बुरा लगता था कि वो एक असुर के अधीन हो गए है। इसके कारण उन्होंने शिव की स्तुति की। इसके बाद शिव जी ने नारद जी को उनके पास भेजा। नारद जी को आते हुए देखकर सभी देवता बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने नारद जी को अपनी पूरी पीड़ा कह दी। नारद जी ने इसके बाद देवताओं को संबल प्रदान किया और उनसे कहा कि मैं आपकी वेदना को समझता हूं। आप मुझ पर विश्वास रखे मैं आपका कार्य सिद्ध करूँगा।

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ऐसा कहकर सभी देवताओं को आश्वासन देकर देवऋषि नारद जी असुर जलंधर की सभा में पहुँच गए। उसने नारद जी का उचित सत्कार किया और उनके आने का प्रयोजन पूछा। नारद जी ने पहले जलंधर के ऐश्वर्य की सराहना की और बाद में कैलास पर्वत की प्रशंसा करने लगे। उन्होंने जलंधर से कहा, दस हजार योजन का वह पर्वत अनेक दिव्य वस्तुओं से सुशोभित है। वह कल्पतरु वन दिव्य, अद्भुत और सोने के समान है। वहीं पर मैंने भगवान शिव और उनकी प्राणवल्लभा देवी पार्वती को भी देखा। भगवान शिव सर्वांग सुंदर, गौरवर्णी तीन नेत्रों वाले हैं और अपने मस्तक पर चंद्रमा धारण किए हुए हैं।

इस पूरे त्रिलोक में उनके समान कोई भी नहीं है। उनके समान समृद्धिशाली और ऐश्वर्य संपन्न कोई भी नहीं है। तभी मुझे तुम्हारी धन-संपत्ति का भी ध्यान आया। इसके बाद उस दैत्य ने भी नारद जी को अपनी पूरी समृद्धि दिखाई। नारद जी ने अपनी बुद्धि से काम लेते हुए उस जलंधर की संपदा की तारीफ़ तो की लेकिन साथ में उसके मन में एक संशय छोड़ दिया। उन्होंने जलंधर से कहा कि तुम्हारे पास सब कुछ है लेकिन स्त्री रत्न नहीं है। बिना दिव्य स्त्री के पुरुष अधूरा है। उसका स्वरूप तभी पूर्ण होता है, जब वह किसी स्त्री को ग्रहण करता है। नारद जी ने जैसा सोचा था वहीं हुआ।

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इस बात को अपने मन में धारण करके जलंधर व्याकुल हो उठा। उसने नारद जी से कहा कि इस संसार में वह सुंदरी कौन है? उस स्त्री रत्न के बारे में मुझे बताइए। वो जहां भी होगी मैं उसे ले आऊंगा। मौके का फायदा उठाते हुए नारद जी ने उसके मन में पार्वती की छवि का प्रवेश कर दिया। उन्होंने कहा कि इस समय इस स्त्री रत्न से युक्त होकर शिव जी परम शक्तिशाली है। जिस स्त्री ने कामदेव के शत्रु को अपने वश में कर लिया तो सोचो उससे बढ़कर स्त्री रत्न इस संसार में क्या होगा? ऐसा कहकर देवताओं के उद्धार के लिए आये ऋषि नारद जी वहां से आकाश मार्ग में चले गए।

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