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Shiv Purana Part 167: विष्णु भी राक्षस जलंधर को नहीं हरा सके! पढ़ें रोचक कहानी

jeevanjali Published by: निधि Updated Sat, 09 Mar 2024 03:59 PM IST
सार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि सिंधु पुत्र जलंधर ने देवताओं को पराजित किया और स्वर्ग लोक पर अपना अधिकार जमा लिया। वहीं देवता सुमेरु पर्वत की गुफा में जा छिपे लेकिन जलंधर वहां भी पहुंच गया।

शिव पुराण
शिव पुराण- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि सिंधु पुत्र जलंधर ने देवताओं को पराजित किया और स्वर्ग लोक पर अपना अधिकार जमा लिया। वहीं देवता सुमेरु पर्वत की गुफा में जा छिपे लेकिन जलंधर वहां भी पहुंच गया। इंद्र सहित सभी देवताओं को बड़ा भय हुआ और वो वहां से भागकर वैकुण्ठ में गए और श्री हरि विष्णु की स्तुति कर उनको पुकारने लगे। देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न हुए विष्णु ने उन्हें देखकर उनके आने का प्रयोजन पूछा। इसके बाद देवताओं ने उन्हें बताया कि किस प्रकार जलंधर ने देवताओं को उनके स्थान से भगा दिया है और वो मनुष्य की भांति विचरण कर रहे हैं। देवताओं को यूँ भयभीत देखकर श्री विष्णु ने उन्हें अभयदान दिया और जलंधर से युद्ध करने का निश्चय किया। वो अपने वाहन गरुड़ पर सवार हो गए।

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उस समय देवताओं के साथ जाते हुए श्री हरि विष्णु को देखकर लक्ष्मी जी के नेत्र में जल भर आया। उन्होंने विष्णु से कहा कि वो मेरा भाई है। ( लक्ष्मी जी समुद्र मंथन से प्राप्त हुई थी और जलंधर भी समुद्र से पैदा हुआ, इस हिसाब से लक्ष्मी जी जलंधर की बड़ी बहन हुई), आप उसका वध कैसे कर सकते है? अपनी पत्नी की इन बातों को सुनकर करूणानिधान श्री विष्णु ने उन्हें आश्वस्त किया कि वो सिर्फ देवताओं के हित का कार्य करेंगे। और चूंकि वो रूद्र के अंश से पैदा हुआ है इसलिए तुम्हारे भाई का मैं वध नहीं करूँगा। ऐसे वचन कहकर वो युद्ध के लिए प्रस्थान करते है।

विष्णु को अपने साथ पाकर देवता उत्साहित हो उठे। उन्होंने वापिस पूरी जान लगाकार दैत्यों से युद्ध करना शुरू किया। गरुड़ के पंखों के वेग से ही असुर उड़ने लगे। यह देखकर जलंधर को बड़ा क्रोध आया। उसने अपनी सेना को देवताओं का संहार करने का आदेश दिया और उसके बाद एक बार फिर भीषण युद्ध होने लगा। उधर श्री विष्णु युद्ध में उतर चुके है। उन्होंने अपने चक्र, गदा और शार्ङ्ग नाम के धनुष को धारण किया हुआ था। उन्होंने अपने धनुष की टंकार मात्र से तीनों लोकों को भयभीत कर दिया। उन्होंने अपने धनुष से छोड़े गए बाणों से करोड़ों दैत्यों के सिर काट डाले। यह देखकर जलंधर श्री विष्णु को मारने के लिए दौड़ा। उसने अपनी गदा से उनके वाहन गरुड़ के सिर पर प्रहार किया जिससे वो भूमि पर गिर पड़ा। इसके बाद उसने श्री विष्णु की छाती पर प्रहार किया।

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जलंधर ने युद्ध में अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन किया। उसने अपने तीक्ष्ण प्रहारों से श्री विष्णु के धनुष को काट दिया। इसके बाद जब विष्णु ने अपनी गदा से उसके शरीर पर प्रहार किया तो जलंधर उस गदा के प्रहार से तनिक भी विचलित नहीं हुआ। क्रोध में भरे हुए विष्णु ने अपनी मुट्ठी को बंद कर उस जलंधर के हृदय पर प्रहार किया लेकिन वो तब भी विष्णु से पराजित नहीं हुआ। जलंधर के साथ भीषण युद्ध करते हुए श्री विष्णु को देखकर तीनों लोक चकित हो उठे। इसके बाद विष्णु को दुःख का अनुभव होने लगा। वो उस असुर के पराक्रम से विस्मित हो उठे। उन्होंने उससे युद्ध करना बंद कर दिया और उससे प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा।

जलंधर ने भी श्री विष्णु को प्रणाम किया और उनसे कहा कि अगर आप मुझपर प्रसन्न है तो अपनी पत्नी और सेवकों के साथ आप मेरे घर में रहिए। इसके बाद विष्णु जी सभी देवताओं और अपनी पत्नी महालक्ष्मी के साथ जलंधर के नगर में निवास करने लगे। उसने पाताल ने निशुंभ नाम के दैत्य को स्थापित किया। इसके बाद वो शेषनाग को

पृथ्वी पर ले आया और देव, गंधर्व, सिद्ध, सर्प, राक्षस तथा मनुष्यों को अपने पुर में नागरिक बनाकर तीनों लोकों पर शासन करने लगा। उसके राज्य में कोई भी रोगी, दुःखी या निर्बल नहीं जान पड़ता था।

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