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Shiv Purana Part 166: जलंधर ने द्रोण पर्वत को समुद्र में क्यों फेंक दिया? जानिए क्या थी वजह

jeevanjali Published by: निधि Updated Sat, 09 Mar 2024 03:25 PM IST
सार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि समुद्र पुत्र जलंधर के दूत को इंद्र ने वापिस भेज दिया और इसके बाद जलंधर ने देवताओं से युद्ध करना का निश्चय किया।

शिव पुराण
शिव पुराण- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि समुद्र पुत्र जलंधर के दूत को इंद्र ने वापिस भेज दिया और इसके बाद जलंधर ने देवताओं से युद्ध करना का निश्चय किया। उसने अपनी सेना को साथ लिया और स्वर्ग में पहुँच गया। उसके सभी वीर चारों और से गरजने लगे और महान युद्ध के लिए तत्पर हो उठे। इंद्रलोक में जाकर उस जलंधर ने अपनी सेना के साथ नंदन-वन में डेरा डाल दिया। जब देवताओं ने देखा कि असुरों की सेना ने उनके नगर को चारों और से घेर लिया है तो वो कवच धारण करके अमरावती से बाहर निकले। इसके बाद देवता और दैत्यों में भीषण युद्ध होने लगा। थोड़ी ही देर में दोनों पक्ष की सेना खून से लथपथ हो गई और वह रणभूमि सांध्यकालीन बादलों के समान दिखाई देने लगी।

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वहीं दूसरी ओर जितने भी असुर युद्ध में मारे जा रहे थे उनको शुक्राचार्य संजीवनी विद्या के माध्यम से जीवित करते जा रहे थे। देवताओं के गुरु अंगिरा यानी बृहस्पति भी किसी से कम नहीं थे। वो द्रोण पर्वत से दिव्य औषधि लाते और देवताओं को जीवित कर देते। जब जलंधर ने देखा कि देवता बार बार जीवित होकर युद्ध में वापिस आ रहे है तो वो क्रोधित हो उठा। उसने गुस्से से शुक्राचार्य से कहा कि आखिर ये देवता कैसे जीवित हो रहे है? सिंधुपुत्र जलंधर की इस बात को सुनकर शुक्राचार्य ने कहा कि देव गुरु बृहस्पति द्रोणपर्वत से औषधि लाकर देवताओं को जीवित कर रहे है।

इसलिए तुम ऐसा करो कि अपने पराक्रम से उस पर्वत को उखाड़कर समुद्र में फ़ेंक दो। अपने गुरु शुक्राचार्य की बात सुनकर जलंधर ने बिना कोई देरी किए उस पर्वत को जड़ से उखाड़ दिया और समुद्र में डाल दिया। चूंकि वो शिव के तेज से ही पैदा हुआ था इसलिए उसके लिए ऐसा करना कोई बड़ी बात नहीं थी। इसके बाद वो फिर से युद्ध में लौटा और देवताओं का संहार करने लगा। देवताओं को मरा हुआ देखकर देवगुरु उस पर्वत के पास गए लेकिन उन्होंने देखा कि वो पर्वत वहां था ही नहीं। उसे वहां नहीं देखकर देव गुरु भयभीत हो उठे और देवताओं को भागने की सलाह दी और कहा कि जलंधर ने उस पर्वत को यकीनन नष्ट कर दिया है।

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उन्होंने देवताओं से कहा कि वो असुर स्वयं शिव के तेज से उत्पन्न है इसलिए उसे जीता नहीं जा सकता है। देवराज इंद्र ने शिव का अपमान किया तभी ये पैदा हुआ है और मैं इसे जानता हूं। अपने गुरु के इस प्रकार के वचन सुनकर उन देवताओं ने युद्ध में जीत की आशा छोड़ दी और दशों दिशाओं में भाग गए। इसके बाद दैत्य राज जलंधर ने अमरावती में प्रवेश किया और इंद्र सहित कई देवता सुमेरु पर्वत की गुफा में छिप गए। वही दूसरी और जलधंर ने दूसरे असुरों को इंद्रलोक में स्थापित किया और स्वयं देवताओं की खोज में सुमेरु पर्वत की गुफा मे जा पहुंचा।

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