Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि शिव के तीसरे नेत्र की अग्नि से जलंधर का जन्म हुआ और उसका विवाह वृंदा से किया गया। एक बार की बात है असुर जलंधर अपनी पत्नी वृंदा और समस्त असुरों के साथ सभा में बैठा हुआ था। उसी समय शुक्राचार्य जो की दैत्यों के गुरु थे वह भी वहां आए। उनको वहां आते देखकर जलंधर ने और सभी असुरों ने उन्हें प्रणाम किया और शुक्राचार्य आसन पर बैठ गए। जालंधर ने उस सभा में राहु को देखा जिसका सिर कटा हुआ था। जालंधर ने शुक्राचार्य से पूछा की, प्रभु ! आप मुझे यह बताइए कि राहु के सिर को किसने काटा है ?
समुद्र पुत्र जलंधर का यह वचन सुनकर भृगुपुत्र शुक्राचार्य भगवान शंकर के चरण कमल का स्मरण करके जालंधर को सारा वृत्तांत बताने लगे। उन्होंने समुद्र मंथन की कथा जलंधर को सुनाई और यह भी बताया कि किस प्रकार दैत्यों के शत्रु देवताओं ने सारे रत्न का हरण कर लिया, अमृत को ग्रहण कर लिया और भगवान विष्णु की सहायता से असुरों को पराजित किया। इसके बाद उन्होंने जलंधर को बताया की किस प्रकार भगवान विष्णु ने देवताओं की सभा में अमृत पीते हुए राहु का सिर काट दिया। जालंधर इस सारे वृत्तांत को सुनकर बड़ा क्रोधित हुआ और वह कुपित हो उठा।
उसके बाद उसने अपने एक दूत को बुलाया जिसका नाम घस्मर था। बहुत प्रकार से सम्मानित करके और उसे अभय प्रदान कर जालंधर ने उस दूत को इंद्र के पास भेजा। वह दूत बड़ी सुंदरता से स्वर्ग लोक को गया और देवराज इंद्र से बोला कि मैं समुद्र पुत्र जलंधर के कहने पर यहां आया हूं और मेरे स्वामी जलंधर ने आपसे यह पूछा है कि मेरे पिता समुद्र से उत्पन्न हुए सारे रत्न का देवताओं ने कैसे अपहरण कर लिया और मेरे स्वामी ने यह भी कहा है कि आप उन रत्न को जितना जल्दी हो सके लौटा दीजिए और देवताओं सहित मेरी शरण में आ जाइए अन्यथा देवताओं के समीप बहुत बड़ा भय उत्पन्न होगा और देवताओं का राज्य नष्ट हो जाएगा।
देवराज इंद्र ने उस दूत दूत से कहा कि एक समय मेरे डर से भागे हुए सभी पर्वतों को और मेरे दानव शत्रुओं को पूर्व काल में उस समुद्र ने शरण दी थी। इसलिए मैंने उसके सारे रत्न का अपहरण कर लिया है। इससे पहले भी सागर के शंख नामक मूर्ख पुत्र ने मुझसे विद्रोह किया था और वह साधुओं का हिंसक और बड़ा पापी था। वह समुद्र में छिपा रहता था इसलिए उसका संहार कर दिया गया।
इस प्रकार इंद्र के द्वारा कही गई बातों को उसे दूत ने दैत्य राज जलंधर से कह दिया। इंद्र के वचन को सुनकर जलंधर बड़ा क्रोधित हुआ और उसके कहने से सभी दिशाओं से और पाताल से करोड़ों दैत्य उपस्थित हो गए और वह अपने करोड़ों सेनापतियों के साथ देवताओं पर विजय प्राप्त करने के लिए निकल पड़ा।