Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि श्री विष्णु ने वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग किया वही वृंदा ने भी विष्णु को श्राप दिया। इसके बाद, दैत्य जलंधर पार्वती को न देखकर युद्ध भूमि में वापिस लौट आया। जब उसकी गांधर्वी माया नष्ट हुई तब शिव जी चैतन्य हुए। उस माया का जब शिव को ज्ञान हुआ तो वो बेहद क्रोधित हो गए और जलंधर से युद्ध करने के लिए तैयार हुए। जलंधर ने भी शिव जी को आता देखकर उन पर बाणों की बौछार कर दी जिन्हे शिव से बड़ी आसानी से काटकर गिरा दिया।
इसके बाद जलंधर ने माया का आश्रय लेकर देवी पार्वती का निर्माण किया। शिव जी ने देखा कि पार्वती रथ पर बंधी हुई है और विलाप कर रही है। शुम्भ और निशुंभ नाम के असुर ने पार्वती का वध कर दिया है। यह सब देखकर शिव जी अत्यंत व्याकुल हो उठे। उनके अंग कमजोर पड़ गए और वो मुख नीचे करके मौन होकर बैठ गए। इसके बाद जलंधर ने अपने 3 बाणों से शिव जी के सिर, हृदय और उदर पर वार किया। शिव जी ने उसी क्षण अग्निज्वाला के समूह से युक्त अत्यंत भयंकर रौद्र रूप धारण कर लिया। उनके इस रूप को देखकर जलंधर की सेना दसों दिशाओं में भागने लगी।
जलंधर के द्वारा रची गई माया एक ही क्षण में विलुप्त हो गई और शुम्भ निशुम्भ भी भागने लगे। उन्हें रणभूमि से यूं भागते देख शिव ने उन्हें श्राप दिया। शिव बोले, तुम युद्ध से भाग रहे हो इसलिए मैं भले ही तुम्हारा वध नहीं करूँगा लेकिन गौरी अवश्य तुम्हारा वध करेगी। उसी समय जलंधर ने अपने शक्तिशाली परिघ से वृषभ पर प्रहार किया। उस प्रहार से आहत हुआ उनका वाहन युद्ध से पीछे हटने लगा।
शिव जी के द्वारा खींचे जाने पर भी वह युद्धभूमि में स्थित नहीं रह सका। उस समय रूद्र रूप को धारण किए हुए शिव प्रलय काल की अग्नि के समान अत्यंत भयंकर हो गए। जगत की रक्षा करने वाले शिव ने ब्रह्म जी द्वारा जलंधर को दिए गए वरदान का स्मरण किया और उस दैत्य का वध करने का निर्णय लिया।
उन्होंने उस महा समुद्र में अपने पैर के अंगूठे से एक भयानक और अद्भुत रथ चक्र का निर्माण कर दिया। उन्होंने जिस सुदर्शन नामक चक्र का निर्माण किया उससे वो जलंधर को मारने के लिए तैयार हुए। शिव ने प्रलयकाल की अग्नि के समान और करोड़ों सूर्य के तेज के समान उस चक्र को जलंधर की ओर फ़ेंक दिया। आकाश और भूमि को प्रज्वलित करते हुए उस चक्र ने जलंधर के सिर को काट डाला।
काले पहाड़ के समान उस शरीर के दो टुकड़े हो गए। उसके रक्त और मांस से पूरी पृथ्वी लाल को सकती थी इसलिए शिव जी की आज्ञा से उसका रक्त और मांस महारौरव नर्क में रक्त का कुंड बन गया। उसके शरीर से निकला हुआ तेज शिव के शरीर में वैसे ही समा गया जैसे वृंदा का तेज गौरी के शरीर में प्रविष्ट हो गया था। सदाशिव के द्वारा जब वो दैत्य जलंधर मारा गया तो पूरा संसार शांत हो गया।