Shiv Purana: पूर्व समय में ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि हुए। उन मरीचि के पुत्र जो कश्यप मुनि हुए वो बड़े धर्मशील और प्रजापति थे। दक्ष ने प्रेम पूर्वक अपनी 13 कन्याएँ उन्हें प्रदान की और उनकी बहुत संतान हुई। उन्ही से सम्पूर्ण देवता और चराचर जगत पैदा हुआ है। कश्यप की उन स्त्रियों में एक दनु नाम वाली स्त्री थी जो कि रूपवती और पति के सौभाग्य से संपन्न थी। उस दनु के अनेक बलवान पुत्र थे। उनमे से एक दानव था विप्रचिति, जो कि बेहद महाबली और पराक्रमी था। उसका दम्भ नाम का एक पुत्र था जो कि धार्मिक और विष्णुभक्त था। उसे कोई पुत्र नहीं हुआ इसलिए वो चिंता में डूबा रहता था। एक समय उसने शुक्राचार्य को गुरु बनाकर उनसे कृष्णमंत्र प्राप्त किया और पुष्कर में एक लाख वर्ष तक घोर तप किया।
तपस्या करते हुए उस दानव के सिर से एक तेज निकलकर सभी दिशाओं में फैलने लगा। उसके तेज से सभी देवता पीड़ित हो गए और इंद्र को आगे करके वो ब्रह्मा जी की शरण में गए। उन्होंने ब्रह्मा जी को उस तेज के बारे में बताया जिसे जानकर वो सब बैकुंठ धाम गए और श्री विष्णु को प्रणाम किया। देवताओं ने उनसे कहा कि हे प्रभु ! हम इस तेज से संतप्त हो रहे है आप हमारी रक्षा करें। विष्णु जी बोले, हे देवताओं, आप चिंता मत करिये, ना ही कोई उपद्रव होने वाला है और ना ही प्रलय काल आया है। मेरा भक्त दम्भ पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहा है और मैं जल्द ही उसे वरदान देकर शांत कर दूंगा।
विष्णु जी के ऐसा कहने पर वो सभी देवता अपने अपने स्थान को चले गए। इसके बाद श्री विष्णु भी दम्भ को वर देने के लिए पुष्कर गए। विष्णु ने अपने भक्त से कहा कि मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं वर मांगो। दम्भ बोला, मुझे एक ऐसा पुत्र चाहिए जो कि तीनों लोकों को जीतने वाला हो और देवताओं के लिए भी अजेय हो। नारायण से उसे वैसा ही वरदान दिया और चले गए। इसके बाद थोड़े ही समय में दम्भ की पत्नी ने गर्भ धारण किया।
एक सुदामा नाम का श्री कृष्ण का गोप था जिसे राधा जी ने श्राप दिया था वही दम्भ की पत्नी के गर्भ में आया। समय आने पर उस साध्वी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम शंखचूड़ रखा गया। जब वह बालक था तभी उसने अनेकों प्रकार की विद्याओं का अभ्यास कर लिया और बेहद तेजस्वी हो गया। वह सभी को बेहद प्रिय था।