Bhagavad Gita: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, हमें जो भी दिखाई दे रहा है वो सब ईश्वर की शक्ति है जो कि माया से संचालित हो रही है।
Bhagavad Gita: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, हमें जो भी दिखाई दे रहा है वो सब ईश्वर की शक्ति है जो कि माया से संचालित हो रही है।
बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्, धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ (अध्याय 7 श्लोक 11 )
बलम्-शक्ति; बल-वताम्-बलवानों का; च-तथा; अहम्-मैं हूँ; काम-कामना; राग आसक्ति; विवर्जितम्-रहित; धर्म-अविरुद्धः-जो धर्म के विरुद्ध न हो; भूतेषु–सभी जीवों में; कामः-कामुक गतिविधियाँ; अस्मि-मैं हूँ; भरत-ऋषभ-भरतवंशियों में श्रेष्ठ, अर्जुन। ।
अर्थ - हे भरत श्रेष्ठ! मैं बलवान पुरुषों का काम और आसक्ति रहित बल हूँ। मैं वो काम हूँ जो धर्म या धर्म ग्रंथों की आज्ञाओं के विरुद्ध नहीं है।
व्याख्या - श्री कृष्ण पहले इस बात को समझा चुके है कि किसी पदार्थ या वस्तु में आसक्ति ठीक नहीं है। इससे व्यक्ति की कामना में वृद्धि होती है और वह इच्छित वस्तु मिलने के बाद भी इन्द्रियों को शांति नहीं मिलती है इसलिए वो ऐसे काम का समर्थन करते है जो धर्म की आज्ञा के विरुद्ध नहीं हो। श्री कृष्ण कहते है कि उनकी शक्ति व्यक्ति को एक ऐसा कर्म करके के लिए बल प्रदान करती है जो आसक्ति रहित है। धर्म के अनुसार जो यौन क्रिया सिर्फ इन्द्रिय सुख के लिए की जाती है वो पशु के समान आचरण है लेकिन उत्तम संतति प्राप्त करने के लिए किया गया यौन आचरण धर्म के अनुकूल है।
चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये, मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ( अध्याय 7 श्लोक 12 )
ये-जो भी; च तथा; एव–निश्चय ही; सात्त्विका:-सत्वगुण, अच्छाई का गुण; भावाः-भौतिक अस्तित्त्व की अवस्था; राजसा:-रजो गुण, आसक्ति का गुणः तामसा:-तमो गुण, अज्ञानता का गुण; च-भी; ये-जो; मत्तः-मुझसे; एव-निश्चय ही; इति–इस प्रकार; तान्-उनको; विद्धि-जानो; न-नहीं; तु-लेकिन; अहम्–मैं; तेषु-उनमें; ते वे; मयि–मुझमें।
अर्थ - तीन प्रकार के प्राकृतिक गुण-सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण मेरी शक्ति से ही प्रकट होते हैं। ये सब मुझमें हैं लेकिन मैं इनसे परे हूँ।
व्याख्या - तीन प्रकार के प्राकृतिक गुण के बारे में कृष्ण अर्जुन को पहले भी बता चुके है लेकिन अब वो उससे आगे बढ़ते है। वो अर्जुन को समझाते है कि ये मेरी शक्ति से ही उत्पन्न होते है लेकिन मुझ पर इनका कोई प्रभाव नहीं होता है। इस संसार में ऐसी कोई भी जीवात्मा नहीं है जो सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण में से किसी गुण से
प्रभावित नहीं हो। चूँकि इन्हे ईश्वर ने ही प्रकट किया है इसे ये सब ईश्वर में मौजूद है लेकिन वो ईश्वर को अपने प्रभाव में नहीं ले सकती है। सृष्टि में व्याप्त सभी जड़-चेतन जीवों और पदार्थों का अस्तित्त्व केवल ईश्वर की शक्ति से ही है।