Bhagavad Gita Part 125 : श्री भगवान् की परा और अपरा शक्तियां कौन कौन सी है? गूढ़ है ये रहस्य।
jeevanjali Published by: कोमल Updated Mon, 11 Mar 2024 06:52 PM IST
सार
Bhagavad Gita:भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार ये सब ईश्वर की प्राकृत शक्ति के आठ तत्त्व हैं।
भागवत गीता- फोटो : jeevanjali
विस्तार
Bhagavad Gita:भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार ये सब ईश्वर की प्राकृत शक्ति के आठ तत्त्व हैं।
ये मेरी अपरा शक्तियाँ हैं किन्तु हे महाबाहु अर्जुन ! इनसे अतिरिक्त मेरी परा शक्ति है। यह जीव शक्ति है जिसमें देहधारी आत्माएँ (जीवन रूप) सम्मिलित हैं जो इस संसार के जीवन का आधार हैं।
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व्याख्या - पिछले श्लोक में श्री कृष्ण अर्जुन को कहते है कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार ये सब ईश्वर की प्राकृत शक्ति के आठ तत्त्व हैं लेकिन इस श्लोक में वो समझाते है कि ये अपरा शक्ति है। इसके अलावा उनकी परा शक्ति भी है और जीव शक्ति है।
हम सब इस बात को जानते है कि मनुष्य ही इस संसार का आधार है। आत्मा ईश्वर का अंश है और उसी से शरीर चलायमान रहता है। इसी चीज को श्री कृष्ण समझा रहे है कि जो देह धारी आत्मा है वही इस संसार को चलाने के लिए उत्तरदायी है और यही ईश्वर की परा शक्ति है।
एतत्-योनीनि-इन दोनों शक्तियों के स्रोत; भूतानि-सभी जीव; सर्वाणि-सभी; इति-वह; उपधारय-जानो; अहम्-मैं; कृत्स्नस्य–सम्पूर्ण; जगतः-सृष्टि; प्रभवः-स्रोत; प्रलयः-संहार; तथा-और।
अर्थ - यह जान लो कि सभी प्राणी मेरी इन दो शक्तियों द्वारा उत्पन्न होते हैं। मैं सम्पूर्ण सृष्टि का मूल कारण हूँ और ये पुनः मुझमें विलीन हो जाती हैं।
व्याख्या - जब हम इस संसार को देखते है तो हमें आत्मा के द्वारा संचालित जीव और पदार्थ दिखाई पड़ते है। पिछले श्लोक में श्री कृष्ण इस बात को समझा चुके है कि जो भौतिक जगत दिखाई दे रहा है वो उनकी अपरा शक्ति है और जो जीवात्मा दिखाई दे रही है वो उनकी परा शक्ति है। आगे श्री कृष्ण अर्जुन को यह भी समझा रहे है कि उनकी ये दो शक्तियां ही सब कुछ उत्पन्न होने का कारण है। वो ही इस सृष्टि के मूल कारण है और प्रलय के बाद वो वापिस ईश्वर में ही विलीन हो जाती है।