Bhagavad Gita: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है कि वो अर्जुन को भक्ति के रहस्य प्रकट करेंगे ताकि उसे भक्ति योग को समझने में आसानी हो सके।
Bhagavad Gita: भगवद्गीता के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है कि वो अर्जुन को भक्ति के रहस्य प्रकट करेंगे ताकि उसे भक्ति योग को समझने में आसानी हो सके।
मनुष्याणां सहस्त्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये, यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः ( अध्याय 7 श्लोक 3 )
मनुष्याणाम् मनुष्यों में; सहस्त्रेषु-कई हजारों में से; कश्चित् कोई एक; यतति-प्रयत्न करता है; सिद्धये-पूर्णता के लिए; यतताम्-प्रयास करने वाला; अपि-निस्सन्देह; सिद्धानाम्-वह जिसने सिद्धि प्राप्त कर ली हो; कश्चित्-कोई एक; माम्–मुझको; वेत्ति-जानता है; तत्त्वतः-वास्तव
अर्थ - हजारों में से कोई एक मनुष्य सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है और सिद्धि प्राप्त करने वालों में से कोई एक विरला ही वास्तव में मुझे जान पाता है।
व्याख्या - इस श्लोक में श्री कृष्ण समझा रहे है कि सिद्धि प्राप्त करने के प्रयत्न हर कोई नहीं करता। इस बात से एक चीज स्पष्ट हो जाती है कि अधिकांश लोग सांसारिक सुख को ही सब कुछ मानते है। वो जीवन भर अपने इन्द्रिय सुख के पीछे ही भागते है। आगे श्री कृष्ण यह भी समझाते है कि हर कोई व्यक्ति मुझे नहीं जान सकता। सिद्धि प्राप्त करने का प्रयत्न करना अलग बात है लेकिन ईश्वर को पा लेना हर किसी के बस की बात नहीं है।
ऐसा कृष्ण इसलिए कहते है कि हर साधक अपनी सिद्धि में भक्ति को शामिल नहीं कर पाता है और यही कारण है कि श्री कृष्ण अर्जुन को भक्ति के रहस्य प्रकट करने की बात कहते हैं।
भूममिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च, अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ( अध्याय 7 श्लोक 4 )
भूमिः-पृथ्वी; आप:-जल; अनल:-अग्नि; वायु:-वायुः खम्-आकाश; मन:-मन; बुद्धिः-बुद्धि; एव–निश्चय ही; च-और; अहंकारः-अहम्; इति–इस प्रकार; इयम्-ये सब; मे मेरी; भिन्ना-पृथक्; प्रकृतिः-भौतिक शक्तियाँ; अष्टधा-आठ प्रकार की।
अर्थ - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार ये सब मेरी प्राकृत शक्ति के आठ तत्त्व हैं।
व्याख्या - इस श्लोक में श्री कृष्ण अपनी शक्ति के 8 तत्व के बारे में अर्जुन को बताते है। जैसा की पिछले कुछ अध्यायों में यह समझा जा चुका है कि प्रकृति के 5 तत्व श्री भगवान् के ही आधीन है लेकिन इस श्लोक में श्री कृष्ण कहते है कि मन बुद्धि और अहंकार भी उनकी प्राकृत शक्ति है। आम तौर पर मन और बुद्धि में ही विकार उत्पन्न होता है इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि इस संसार में जो कुछ भी होता है वह श्री भगवान् की इच्छा से ही होता है।