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Bhagavad Gita Part 123: अर्जुन से बोले श्री कृष्ण भक्तियोग को जान लिया तो कुछ भी असंभव नहीं !

jeevanjali Published by: निधि Updated Sun, 10 Mar 2024 12:41 PM IST
सार

Bhagavad Gita: मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः, असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ( अध्याय 7 श्लोक 1 )

भगवद गीता
भगवद गीता- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Bhagavad Gita: मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः, असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ( अध्याय 7 श्लोक 1 )

मयि–मुझमें; आसक्त-मना:-मन को अनुरक्त करने वाला; पार्थ-पृथापुत्र, अर्जुन; योगम्-भक्ति योगः युञ्जन्–अभ्यास करते हुए; आश्रयः-मेरे प्रति समर्पित; असंशयम्-सन्देह से मुक्त; समग्रम्-पूर्णतया; माम्-मुझे; यथा-कैसे; ज्ञास्यसि तुम जान सकते हो; तत्-वह; श्रृणु-सुनो।

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अर्थ - हे अर्जुन ! अब यह सुनो कि भक्तियोग के अभ्यास द्वारा और मेरी शरण ग्रहण कर मन को केवल मुझमें अनुरक्त कर और संदेह मुक्त होकर तुम मुझे कैसे पूर्णतया जान सकते हो।

व्याख्या - गीता के छठे अध्याय में श्री कृष्ण ने अर्जुन को योग का महत्व बताया और यह भी समझाया कि उत्तम योगी कौन है। वो कर्मयोगी, ज्ञानयोगी और कर्म सन्यास योगी से भी उत्तम है। इसके पीछे की वजह यह थी कि उत्तम योगी अपने मन को एकाग्र कर श्री भगवान् के चरणों की सेवा करता है। ऐसे में मन को स्थिर कर शुद्ध बुद्धि से कर्म करने वाले मनुष्य को श्री कृष्ण ने उत्तम कहा है। अब आने वाले श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को यह समझाने वाले है कि उनकी भक्ति कैसे करनी है? कैसे उनकी शरण को ग्रहण करना है? कैसे व्यक्ति खुद को संदेह से मुक्त कर सकता है।

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ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः, यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते (अध्याय 7 श्लोक 2 )

ज्ञानम्-ज्ञान; ते-तुमसे; अहम्-मैं; स–सहित; विज्ञानम्-विवेक; इदम्-यह; वक्ष्यामि-प्रकट करना; अशेषत:-पूर्णरूप से; यत्-जिसे; ज्ञात्वा-जानकर; न-नहीं; इह-इस संसार में; भूयः-आगे; अन्यत्-अन्य कुछ; ज्ञातव्यम्-जानने योग्य; अवशिष्यते शेष रहता है।

अर्थ - अब मैं तुम्हारे समक्ष इस ज्ञान और विज्ञान को पूर्णतः प्रकट करूँगा जिसको जान लेने पर इस संसार में तुम्हारे जानने के लिए और कुछ शेष नहीं रहेगा।

व्याख्या - इस श्लोक में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है कि वो उसके सामने अब इस भक्ति योग का सम्पूर्ण रहस्य प्रकट करने वाले है। हम सब इस बात को जानते है कि ज्ञान की जानकारी होना और उसका अनुभव करना यह दो अलग अलग चीजें है। इसी प्रकार भक्ति के बारे में कुछ सुन लेना और उसका अनुभव करना ये भी दो अलग चीज़े है। हमारे पुराणों में भी इस बात का वर्णन है कि भक्ति के रहस्य को समझने बिना ईश्वर के दर्शन नहीं किए जा सकते है। इसलिए भगवान् श्री कृष्ण अर्जुन को कहते है कि वो स्वयं उसे इस विज्ञानं के बारे में समझाने वाले है और उसे प्रकट करने वाले है। इसके बाद व्यक्ति के लिए कुछ और भी जानना शेष नहीं रहता है।
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