RadhaKrishna : राधा बिन न मिले कृष्ण, कृष्ण बिन न पाइये राधा,प्रेम की देवी का अनमोल जीवन परिचय
जीवांजलि डेस्क Published by: सुप्रिया शर्मा Updated Mon, 22 May 2023 06:02 PM IST
सार
राधा-कृष्ण की तरह इनके भक्त भी निराले होते हैं। वे सारे संसार से प्रेम करते हैं। इनके अलावा किसी रिश्ते को स्वीकार नहीं करते। राजा हो या रंक हर कोई इनके चरणों की भक्ति ही चाहता है। इनके दरबार में संसारी वस्तु का कोई मोल नहीं ये रीझते हैं तो केवल प्रेम और भाव पर
राधा कृष्ण- फोटो : jeevanjali
विस्तार
भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति प्राप्त करने का मार्ग केवल श्रीराधा है। इनका नाम लेने मात्र से प्राणी समस्त कष्टों से मुक्त होकर श्रीकृष्ण में रम जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की ह्दय की शक्ति ही श्रीराधा है। श्रीकृष्ण के प्राणों से ही इनका आविर्भाव हुआ। मान्यता है कि श्रीकृष्ण हमेशा श्रीराधा की अराधना करते रहते हैं। इसी तरह श्री राधा हमेशा श्रीकृष्ण में डूबकर उनकी अराधना करती हैं। इन्हें राधिका के नाम से भी पुकारा जाता है।
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आपको बता दें सृष्टि में सबसे बड़ा प्रेम का उदाहरण राधा-कृष्ण का पवित्र प्रेम है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं मानो राधा के बिना कृष्ण नहीं और कृष्ण के बिना राधा नहीं। भक्त भी इनके प्रेम में मग्न रहते हैं जब उन्हें कृष्ण को पाना हो तो वे राधा पुकारते हैं और जब राधा को रीझाना हो तो कृष्ण पुकारते हैं। राधा-कृष्ण की भक्ति में अलग ही मस्ती है। राधा-कृष्ण की तरह इनके भक्त भी निराले होते हैं। वे सारे संसार से प्रेम करते हैं। इनके अलावा किसी रिश्ते को स्वीकार नहीं करते। राजा हो या रंक हर कोई इनके चरणों की भक्ति ही चाहता है। इनके दरबार में संसारी वस्तु का कोई मोल नहीं ये रीझते हैं तो केवल प्रेम और भाव पर। चलिए चलते हैं श्रीराधा को जानने की यात्रा पर।
राधा कृष्ण- फोटो : jeevanjali
वृषभानु गोप और कीर्तिदा ने पूर्वजन्म में पति-पत्नी के रूप में वर्षों तक ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। कमलयोनि ब्रह्मा ने दोनों को वर दिया कि द्वापर के अन्त में श्रीकृष्ण की आदिशक्ति श्रीराधा तुम्हारी पुत्री बनेंगी। भाद्र शुक्ल अष्टमी के दिन कीर्तिदा रानी के कक्ष में दिव्य ज्योति फैल गयी जिससे वहां मौजूद सभी की आंखें बंद हो गयी। आंख खोलते ही कीर्तिदा के बगल में एक दिव्य कन्या दिखायी दी। इस कन्या को देखकर सारे लोग भावविभोर हो गये और सुंदरता की चर्चा करने लगे। राधा रानी के जन्मपर वृषभानु ने अपना सारा खजाना खोल दिया और ऐसा जन्मोत्सव हुआ जिसे देखकर देवता भी हैरान हो गये।
एक बार देवर्षि नारद ने व्रज में श्रीकृष्ण का दर्शन किया। उन्होंने सोचा, जब स्वयं गोलोकविहारी श्रीकृष्णचन्द्र भूतलपर अवतरित हो गये हैं तो गोलोकेश्वरी श्रीराधा भी कहीं-न-कहीं गोपी रूपमें अवश्य अवतरित हुई होंगी। घूमते-घूमते देवर्षि नारद वृषभानु गोप के विशाल भवन के पास पहुँचे। वृषभानु गोप ने उनका सत्कार किया। फिर उन्होंने देवर्षिसे निवेदन किया- 'भगवन्! मेरी एक पुत्री है वह सुन्दर तो इतनी है मानो सौन्दर्य की खान हो लेकिन वह अपनी आँखें नहीं खोलती है।
देवर्षि नारद, वृषभानु के साथ उनके कक्ष में गये। बालिका का अनुपम सौन्दर्य देखकर देवर्षि के विस्मय की सीमा न रही। नारद के मन में आया, निश्चय ही यही रासेश्वरी श्रीराधा हैं। वृषभानु को बाहर भेजकर उन्होंने एकान्त में श्रीकृष्ण प्राणेश्वरी की नाना प्रकार से स्तुति की किन्तु उन्हें श्रीराधा के दिव्य स्वरूप का दर्शन नहीं हुआ। जैसे ही देवर्षि नारदने श्रीकृष्ण-वन्दना करना शुरू किया, दृश्य बदल गया। देवर्षि नारद को किशोरी श्री राधिका का दर्शन हुआ। उनके साथ वहां अति सुंदर रूप में अगणित सखियां भी वहां मौजूद थी। देवर्षि को अपने दिव्य रूप का दर्शन देने के बाद दोबारा पालने में बालिका रूप में प्रकट हो गयी। इस दृश्य से देवर्षि नारद गदगद हो गये।
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राधा-कृष्ण का मिलन पहली बार व्रज में ही हुआ। जब राधा-कृष्ण का मिलन हुआ तो समस्त संसार में प्रेम की लहर उमड़ प़ड़ी। प्रेम ऐसा जिसे शब्दों में बयां न किया जा सके। संसार से बंधनों से मुक्त राधा-कृष्ण दोनों एक दूसरे से जुड़े थे मानों दो शरीर और एक आत्मा हो।भगवान श्री कृष्ण की लीला सहचरी श्रीराधा के विषय में साम-रहस्य का कथन है कि इन्हीं के कारण रसस्वरूप परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है, इसलिये ये राधा हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने और श्रीराधाके अभेद को लेकर कहा है कि 'श्रीराधाके कृपाकटाक्ष के बिना किसी को मेरे प्रेम की उपलब्धि ही नहीं हो सकती।' वास्तव में रससागर श्रीराधा-कृष्ण एक ही देह हैं और संसार के सामने दो रूपों में प्रकट होते हैं। श्रीकृष्णकी प्राप्ति और मोक्ष दोनों श्रीराधाजी की कृपादृष्टिपर ही निर्भर है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार राधा कृष्ण के दर्शनों के लिए तो देवता भी कतार लगाए खड़े रहते हैं। श्री राधा में ही समस्त संसार का प्रेम है। जो एक बार इनके भक्ति मार्ग में आ जाये तो जीवन ही बदल देता है। उसे संसार का कोई भय नहीं उसके सबकुछ केवल श्रीकृष्ण ही है। राधाकृष्ण के प्रेम को समझना हो तो व्रज की यात्रा जरूर करनी चाहिए। यहां सिर्फ राधे-राधे कहिए और अनमोल कृपा का प्रसाद पाइये।