Ardhnarishwar : क्यों और कैसे लिया भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर अवतार, क्या है इसका रहस्य
जीवांजलि डेस्क Published by: सुप्रिया शर्मा Updated Mon, 22 May 2023 06:58 PM IST
सार
शिव जी के अर्धनारीश्वर रूप को लेकर कई मान्यताएं हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था, तब तक शिव जी ने सिर्फ विष्णु और ब्रह्मा जी को ही अवतरित किया था और किसी भी नारी की उत्पत्ति नहीं हुई थी।
विस्तार
क्यों और कैसे लिया भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर शिव
हिन्दू धर्म में भगवान शिव को सदियों से पूजा जाता है, कहा जाता है कि जो कोई भी भगवान भोलेनाथ की सच्चे मन से पूजा आराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, शिव जी कि शक्ति के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप के बारे में ,आप को बता दें की शिव जी को अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है। इस रूप के जरिए शिव जी ने सृष्टि में स्त्री और पुरुष दोनों की समानता को एक बताया और अर्धनारीश्वर रूप लेकर सृष्टि में संदेश दिया की ये सृष्टि स्त्री और पुरुष के मेल से ही आगे बढ़ सकती है तो चलिए जानते हैं विस्तार से इस महत्वपूर्ण कथा के बारे में
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शिव जी के अर्धनारीश्वर रूप को लेकर कई मान्यताएं हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था, तब तक शिव जी ने सिर्फ विष्णु और ब्रह्मा जी को ही अवतरित किया था और किसी भी नारी की उत्पत्ति नहीं हुई थी। जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण का काम शुरु किया, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि उनकी ये सारी रचनाएं जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी और हर बार उन्हें नए सिरे से उत्पत्ति करनी होगी। उनके सामने ये एक बहुत ही बड़ी दुविधा थी कि इस तरह से सृष्टि की वृद्धि आखिर कैसे होगी। गहन विचार के बाद भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच पाए। तब ब्रह्माजी को बहुत दुःख हुआ, उसी समय एक आकाशवाणी हुई--आकाशवाणी में आवाज़ आई - ब्रह्म अब तुम्हें मैथुनी (प्रजनन) सृष्टि का निर्माण करना चाहिए ताकि सृष्टि को बेहतर तरीके से संचालित किया जा सके, आकाशवाणी सुनकर ब्रह्माजी ने मैथुनी सृष्टि रचने का निश्चय तो कर लिया, किंतु उस समय तक नारियों की उत्पत्ति न होने के कारण वे अपने निश्चय में सफल नहीं हो सके। तब ब्रह्माजी ने सोचा कि परमेश्वर शिव की कृपा के बिना मैथुनी सृष्टि नहीं हो सकती। अतः वे उन्हें प्रसन्न करने के लिये कठोर तप करने लगे। बहुत दिनों तक ब्रह्माजी अपने हृदय में प्रेम पूर्वक महेश्वर शिव का ध्यान करते रहे। उनके तीव्र तप से प्रसन्न होकर भगवान् उमा-महेश्वर ने उन्हें अर्धनारीश्वर- रूप में दर्शन दिया। देवाधि देव भगवान् शिव के उस दिव्य स्वरूप को देखकर ब्रह्माजी अभिभूत हो उठे और उन्होंने दण्डवत (भूमि पर लेटकर) उस अलौकिक विग्रह को प्रणाम किया।
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महेश्वर शिव ने कहा- 'पुत्र ब्रह्मा! मुझे तुम्हारा मनोरथ ज्ञात हो गया है। तुमने प्रजाओं की वृद्धि के लिये जो कठिन तप किया है; उससे मैं परम प्रसन्न हूँ।
मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूँगा।' ऐसा कहकर शिवजी ने अपने शरीर के आधे भाग से उमादेवी को अलग कर दिया। इसके बाद भगवान शिव शरीर के आधे अंग से अलग हुए, उन पराशक्ति को साष्टांग प्रणाम करके ब्रह्माजी इस प्रकार कहने लगे- "शिवे! सृष्टि के प्रारम्भ में आपके पति देवाधिदेव शम्भु ने मेरी रचना की थी। भगवति! उन्हीं के आदेश से मैंने देवता आदि समस्त प्रजाओं की मानसिक सृष्टि की, परंतु अनेक प्रयासों के बाद भी उनकी वृद्धि करने में मैं असफल रहा हूँ। अतः अब स्त्री-पुरुष के समागम से मैं प्रजाओं को उत्पन्न कर सृष्टिका विस्तार करना चाहता हूँ, किंतु अभी तक नारी कुल का प्राकट्य नहीं हुआ है और नारी -कुल की सृष्टि करना मेरी शक्ति के बाहर है। देवि! आप सम्पूर्ण सृष्टि तथा शक्तियों की उद्गमस्थली हैं इसलिये हे मातेश्वरी, आप मुझे नारी कुल की सृष्टि करने की शक्ति प्रदान करें, मैं आपसे एक और विनती करता हूँ कि चराचर जगत् की वृद्धि के लिये आप मेरे पुत्र दक्ष की पुत्री के रूप में जन्म लेने की भी कृपा करें।'ब्रह्मा जी की प्रार्थना सुनकर परमेश्वरी शिवा ने कहा 'तथास्तु' ऐसा ही होगा और ब्रह्मा को उन्होंने नारी कुल की सृष्टि करने की शक्ति प्रदान की .इसके लिये उन्होंने अपनी भौहों के मध्य भाग से अपने ही समान कान्तिमती एक शक्ति प्रकट की उसे देखकर देवदेवेश्वर शिव ने हँसते हुए कहा -
'देवि! ब्रह्मा ने तपस्या द्वारा तुम्हारी आराधना की है, अब तुम उन पर प्रसन्न हो जाओ और उनका मनोरथ पूर्ण करो।' परमेश्वर शिव की इस आज्ञा को शिरोधार्य करके व शक्ति ब्रह्माजी की प्रार्थना के अनुसार दक्ष की पुत्री हो गयी। इस प्रकार ब्रह्माजी को अनुपम शि देकर देवी शिवा महादेव जी के शरीर में प्रविष्ट हो गयीं। फिर महादेव जी भी अन्तर्धान हो गए, तभी से इस लोक में मैथुनी सृष्टि चल पड़ी। सफल मनोरथ होकर ब्रह्माजी भी परमेश्वर शिव को स्मरण करते हुए नए रूप से सृष्टि-विस्तार करने लगे।
इस प्रकार शिव और शक्ति एक-दूसरे से अभिन्न तथा सृष्टि के आदिकारण हैं। जैसे पुष्प में गन्ध, चन्द्र में चन्द्रिका, सूर्य में प्रभानित्य और स्वभाव-सिद्ध है, उसी प्रकार शिव में शक्ति स्वभाव सिद्ध है। शिव में ही शक्ति है। शिव आधार तत्य है और शक्ति परिणामी, अतः शिव अजन्मा आत्मा है और शक्ति जगत में नाम रूप के द्वारा राजा, यही अर्धनारी शिवका रहस्य है।स्त्री और पुरुष एक दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा है। यही बात हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव के अवतार अर्धनारीश्वर के रूप में दर्शायी गई है। शिव का यह स्वरूप इस बात की ओर इंगित करता है कि समाज में जो जगह एक पुरुष की होती है वही महिला की होनी चाहिए।