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Shiv Purana Part  170 : शिव के मुख से क्यों प्रकट हुई थी भयंकर ज्वाला? उसका नाम क्या था

jeevanjali Published by: कोमल Updated Mon, 11 Mar 2024 06:53 PM IST
सार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि कैसे 'कीर्तिमुख' भगवान् शिव के द्वारपाल बने। जब शिव के द्वारपाल ने राहु को छोड़ दिया तो वो प्रसन्न हुआ और अपने स्वामी दैत्य जलंधर के पास गया।

शिव पुराण
शिव पुराण- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Shiv Purana: शिव पुराण के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि कैसे 'कीर्तिमुख' भगवान् शिव के द्वारपाल बने। जब शिव के द्वारपाल ने राहु को छोड़ दिया तो वो प्रसन्न हुआ और अपने स्वामी दैत्य जलंधर के पास गया। उसने वहां जाकर अपने स्वामी को वह सब कह दिया जो उसके साथ घटित हुआ था। इसके बाद, उन सारी बातों को जानकर असुरराज जलंधर का क्रोध सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने अपने सेनापति और सभी योद्धाओं को बुलाया और उनसे युद्ध के लिए तैयार होने के लिए कहा। अपने स्वामी की आज्ञा पाकर कालनेमि, शुंभ निशुंभ आदि महावीर पराक्रमी दैत्य युद्ध के लिए तैयारी करने लगे। उस असुर की सेना भगवान् शिव से ही युद्ध करने के लिए तैयार हो गई। उस सेना के साथ दैत्य गुरु शुक्राचार्य और राहु भी साथ थे। 

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उस समय जलंधर का मुकुट वेग से खिसककर पृथ्वी पर गिर गया और मृत्यु सूचक अपशगुन होने लगे। जब देवताओं ने जलंधर को युद्ध की तैयारी करते हुए देखा तो वो छिपकर शिव के पास गए और उनकी स्तुति करने लगे। उन्होंने शिव से कहा कि आपने हम देवताओ की रक्षा के लिए श्री विष्णु को नियुक्त किया था लेकिन अब तो श्री विष्णु भी उसी असुर के साथ चले गए है। इस समय वो असुर आपसे युद्ध करने के लिए आ रहा है। इसलिए ये प्रभु ! आप हम देवताओं की रक्षा करिए और असुर का वध कीजिए। 

इसके बाद भगवान् शंकर ने श्री विष्णु जी को बुलाया और उनसे जलंधर का वध नहीं करने का कारण पूछा। जिसके जवाब में श्री विष्णु ने शिव से कहा कि प्रभु ! वह आपके ही अंश से पैदा हुआ है इसलिए मैंने उस जलंधर का वध नहीं किया। मैंने उसके पराक्रम से संतुष्ट होकर उससे वर मांगने को कहा और उसने मुझे अपने नगर में रहने के लिए कहा। आगे श्री विष्णु से शिव से कहा कि चूंकि वो आपका अंश है इसलिए अब आप ही उसका वध करिए। विष्णु के इस प्रकार वचन कहें जाने पर शिव संतुष्ट हुए और उन्होंने देवताओं से कहा कि आप भय रहित हो जाइए, इस असुर का वध मेरे हाथों से ही होगा। इसी बीच वह अति पराक्रमी योद्धा शिव से युद्ध करने के उद्देश्य से वहां आ गया और अपनी सेना के द्वारा उसने कैलास पर्वत को घेर लिया। 

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यह देखकर शिव को बेहद क्रोध आया और उन्होंने अपने गणों को युद्ध करने की आज्ञा दे दी। शिवगणों और जलंधर की दैत्यसेना में बड़ा भीषण युद्ध होने लगा। उन्होंने कई दैत्यों को मौत के घाट उतार दिया लेकिन शुक्राचार्य अपनी संजीवनी विद्या से सबको जीवित कर देते थे। उन्हें इस प्रकार बार बार जीवित होते देखकर शिव गण उदास हो गए और उन्होंने शिव जी से सारी बात कही। जब शिव जी ने यह सब सुना तो वो क्रोधित हो उठे। उसी समय शिव के मुख से एक भयंकर ज्वाला कृत्या के रूप में प्रकट हुई। उसका रूप अत्यंत रौद्र और भयानक था । वह वहां से सीधे युद्ध भूमि में गई और दैत्यों को पकड़ पकड़कर खाने लगी। 

उसने शुक्राचार्य को भी अपने गुह्यदेश में छिपा दिया और अपने तेज से आकाश और पृथ्वी को व्याप्त करके गायब हो गई। कालनेमी, शुंभ, निशुंभ ने जब अपनी सेना को भागते हुए देखा तो उन्होंने दुगुनी ताकत से युद्ध करना शुरू कर दिया। उन्होंने शिव के गणों की सेना पर अपने बाणों की जैसे वर्षा कर दी। जब शिव की सेना छिन्न भिन्न होने लगी तो गणेश, कार्तिकेय और नंदी भी बड़ी तेजी से उन दैत्यों को रोकने लगे।    
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