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Hanuman Story: श्री राम के परम भक्त हनुमान ने क्यों चीरा था अपना सीना? पढ़ें पौराणिक कथा

jeevanjali Published by: निधि Updated Thu, 28 Dec 2023 09:00 AM IST
सार

Why did Hanuman ji tore his chest: शास्त्रों के अनुसार श्रीराम भक्त हनुमान अमर हैं, वे हर युग में रहते हैं। हनुमानजी की पूजा करने से सभी संकट चमत्कारिक रूप से समाप्त हो जाते हैं और भक्त को सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

हनुमान जी को क्यों चीरना पड़ा था अपना सीना?
हनुमान जी को क्यों चीरना पड़ा था अपना सीना?- फोटो : jeevanjali

विस्तार

Why did Hanuman ji tore his chest: शास्त्रों के अनुसार श्रीराम भक्त हनुमान अमर हैं, वे हर युग में रहते हैं। हनुमानजी की पूजा करने से सभी संकट चमत्कारिक रूप से समाप्त हो जाते हैं और भक्त को सुख-शांति की प्राप्ति होती है। हनुमानजी की पूजा के लिए मंगलवार और शनिवार विशेष रूप से सर्वोत्तम दिन माने गए हैं। वे थोड़ी सी पूजा से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों के कष्ट दूर कर देते हैं। मंगल, शनि और पितृ दोषों से मुक्ति पाने के लिए भी हनुमान जी की पूजा बहुत लाभकारी होती है। घर में फैली नकारात्मक ऊर्जा एवं बुरी शक्तियां भी हनुमानजी की आराधना करने से भाग जाती हैं। इस पौराणिक कथा से बाल ब्रह्मचारी हनुमान की भगवान श्री राम के प्रति निःस्वार्थ भक्ति और अनन्य प्रेम स्पष्ट होता है। हनुमानजी ने भगवान राम के हृदय में ऐसी जगह बनाई कि दुनिया उन्हें भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त मानती है।
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जब भगवान हनुमान ने चीरा अपना सीना

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम के राज्याभिषेक के बाद दरबार में उपस्थित सभी लोगों को उपहार दिए जा रहे थे। इसी दौरान माता सीता ने अपने प्रिय हनुमान को रत्नों से जड़ी एक बेहद कीमती माला दी। प्रसन्न मन से हनुमान जी उस माला को लेकर कुछ दूर गए और उसे अपने दांतों से तोड़ दिया और माला के मोतियों को बड़े ध्यान से देखने लगे। उसके बाद उदास होकर एक-एक कर उन्होंने सारे मोती तोड़-तोड़ कर फेंक दिए। यह सब दरबार में उपस्थित लोगों ने देखा तो सब के सब आश्चर्य में पड़ गए। जब हनुमान जी मोती तोड़कर फेंक रहे थे तो लक्ष्मण जी को उनकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया, उन्होंने इसे श्री राम का अपमान समझा। उन्होंने भगवान राम से कहा, 'हे प्रभु, माता सीता ने हनुमान को बहुमूल्य रत्नों और मोतियों की एक माला दी और उन्होंने वह माला तोड़कर फेंक दी।

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जिसके बाद भगवान राम ने कहा, 'हे अनुज तुम मुझे प्राणों से भी अधिक प्रिय हो, हनुमान ने उन रत्नों को क्यों तोड़ा यह तो वही जानते हैं। इसलिए इस जिज्ञासा का उत्तर हनुमान से ही मिलेगा। तब रामभक्त हनुमान ने कहा, 'मेरे लिए वह सब कुछ बेकार है जिसमें मेरे प्रभु राम का नाम नहीं है। मैंने यह हार अमूल्य समझ कर लिया था, लेकिन जब मैनें इसे देखा तो पाया कि इसमें कहीं भी राम-नाम नहीं है। उन्होंने कहा कि मेरे हिसाब से श्री राम के नाम के बिना कोई भी वस्तु मूल्यवान नहीं हो सकती. अतः मेरे अनुसार इसे त्याग देना चाहिए। यह बात सुनकर भ्राता लक्ष्मण बोले कि आपके शरीर पर भी तो राम का नाम नहीं है तो इस शरीर को क्यों रखा है? हनुमान तुम इस शरीर को भी त्याग दो। लक्ष्मण की बात सुनकर हनुमान ने अपना वक्षस्थल नाखूनों से चीर दिया और उसे लक्ष्मणजी सहित सभी को दिखाया, जिसमें श्रीराम और माता सीता की सुंदर छवि दिखाई दे रही थी। यह घटना देख कर लक्ष्मण जी से आश्चर्यचकित रह गए, और अपनी गलती के लिए उन्होंने हनुमानजी से क्षमा मांगी।

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