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Ganga Saptami 2024: गंगा सप्तमी पर करें मां गंगा स्तोत्रम का पाठ, सभी पापों से मिलती है मुक्ति

jeevanjali Published by: निधि Updated Thu, 02 May 2024 06:22 PM IST
सार

Ganga Saptami 2024: इस वर्ष गंगा सप्तमी 14 मई 2024, मंगलवार को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां गंगा की पूजा करनी चाहिए।

Ganga Saptami 2024
Ganga Saptami 2024- फोटो : JEEVANJALI

विस्तार

Ganga Saptami 2024: इस वर्ष गंगा सप्तमी 14 मई 2024, मंगलवार को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां गंगा की पूजा करनी चाहिए। हिंदू धर्म में गंगा सप्तमी का बहुत विशेष महत्व है। मां गंगा को मोक्ष प्रदान करने वाली माना जाता है। इस दिन मां गंगा की पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा मां गंगा की पूजा और स्नान करने से समृद्धि, यश और सम्मान की प्राप्ति होती है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गंगा पूजन करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम होते हैं। इस दिन मां गंगा स्तोत्र का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है। इसका पाठ करने से मां गंगा की कृपा प्राप्त होती है।
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श्री गंगा जी की स्तुति

गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम्।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम्॥

मां गंगा स्तोत्रम्॥
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥1॥

भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव
जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं
पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ 2॥

हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे
हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं
कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ 3॥

तव जलममलं येन निपीतं,
परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः
किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ 4॥

पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे
खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये,
पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ॥ 5॥

कल्पलतामिव फलदां लोके,
प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गङ्गे
विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ॥ 6॥

तव चेन्मातः स्रोतःस्नातः
पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे
कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥ 7॥

पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे
जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे
सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ 8॥

रोगं शोकं तापं पापं
हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे
त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥ 9॥

अलकानन्दे परमानन्दे
कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः
खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥10॥

वरमिह नीरे कमठो मीनः
किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव
न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥ 11॥

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये
देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं
पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ 12॥

येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां
भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकान्तापज्झटिकाभिः
परमानन्दकलितललिताभिः ॥ 13॥

गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं
वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ।
शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति
सुखी स्तव इति च समाप्तः ॥ 14॥

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे
त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले
मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥

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