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Shiv Parvati Vivah: सृष्टि की सबसे अनोखी थी शिव की बारात, रोचक है यह जानकारी

जीवांजलि डेस्क Published by: सुप्रिया शर्मा Updated Mon, 22 May 2023 07:03 PM IST
सार

भगवान शिव को पशुपतिनाथ भी कहा जाता है यानि पशुओं का राजा। जिससे स्पष्ट है कि पशुओं को तो बारात में साथ जाना ही था। भूत-पिशाच से शिव जी की बहुत बनती हैं क्योंकि जिससे सारा संसार भय खाता है या बिल्कुल वास्ता नहीं रखता उसे शिव अपनाते हैं। इसी कारण से भूत-पिशाच अपने अराध्य की बारात में पीछे नहीं रहे। 

शिव पार्वती विवाह कथा
शिव पार्वती विवाह कथा- फोटो : jeevanjali

विस्तार

महाशिवरात्री के दिन भगवान शिव और माता पार्वती विवाह के बंधन में बंधकर सदा के लिए एक हो गए थे। महाशिवरात्री के दिन को बेहद खास माना जाता है क्योंकि इसी दिन शिव जी वैरागी की जीवन छोड़कर गृहस्थ हो गए थे। माता पार्वती को सती का रूप माना गया है और शिव-शक्ति के मिलन का यह संयोग नियति ने पहले ही तैयार कर रखा था। भगवान शिव और पार्वती माता के विवाह का आयोजन बड़े ही भव्य तौर पर हुआ था जिसमें सभी को आने का निमंत्रण था। इस विवाह में शिव की बारात बहुत खास थी। ऐसा कोई प्राणी, पशु और पक्षी नहीं था जो शिव के साथ होकर पार्वती माता के घर बारात में न गया हो।
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बारात में देवता और दैत्य

भगवान शिव की बारात में देवता और दैत्य दोनों ही शामिल थे। मान्यता है कि देवता और असुर एक जगह नहीं रह सकते जिस स्थान पर देवता होंगे वहां असुर नहीं जाएंगे जबकि असुर के स्थानों पर देवता नहीं जाते हैं। भगवान की बारात में ये दोनों एक साथ खुशी-खुशी दिखें। भगवान शिव को पशुपतिनाथ भी कहा जाता है यानि पशुओं का राजा। जिससे स्पष्ट है कि पशुओं को तो बारात में साथ जाना ही था। भूत-पिशाच से शिव जी की बहुत बनती हैं क्योंकि जिससे सारा संसार भय खाता है या बिल्कुल वास्ता नहीं रखता उसे शिव अपनाते हैं। इसी कारण से भूत-पिशाच अपने अराध्य की बारात में पीछे नहीं रहे। 

 
शिव का श्रृंगार

सभी देवी और देवता अपने अपने विमानों पर विराजकर शिवजी के विवाह में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। अप्सरांए गाना गा रही थी। पुष्पों की वर्षा हो रही थी। दूल्हे के रूप में दिख रहे शिव के मस्तक पर चंद्रमा, सिर पर गंगाजी, तीन नेत्र, सांपों का जनेऊ, कंठ में विष और छाती पर नरमुण्डों की माला थी।भगवान शिव के निवास स्थान से बारात ने प्रस्थान किया और पूरे गाजे-बाजे के साथ बारात निकली। यह बारात सबसे अलग और विशालकाय थी। जिसमें सभी को जाने की अनुमति थी। जैसे ही बारात नगर के समीप पहुंची तो चहल-पहल मच गयी और अगवानी करने वाले लोग विभिन्न प्रकार की सवारियों तथा स्वागत-सत्कार का सामान लेकर उसे लिवाने के लिए गए।  बारात का आदर करने पहुंचे लोग भगवान विष्णु का दर्शन पाकर धन्य हो गए और अपने भीतर सुख का अनुभव करने लगे लेकिन भगवान शिव की बारात को देखकर सब भयभीत हो गए। शिव जी के दल को देखकर सवारियां भाग गयी क्योंकि उसमें पिशाचों के भयानक चेहरे थे। इसमें कोई बिना सर का, किसी के हाथ-पांव नहीं, कोई खून से लथपथ और अन्य कोई अधिक मोटा या छोटा था। यह दल किसी यमराज की सेना से कम नहीं लग रहा था।
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बारात देख चिंता में पड़े माता-पिता

माता पार्वती के अभिभावक पर्वतराज हिमालय और मैनावती चिंता में पड़ गए। बारात जब द्वार पर पहुंची तो स्त्रियां भाग गयी। रानी मैनावती व्याकुल हो गयीं जिससे देखकर सभी स्त्रियां दुखी हो गयीं। पार्वती के स्नेह में माता विलाप करने लगी और देवर्षि नारद को भला-बुरा कहने लगी। वे अपनी पुत्री को देखती और पहले से अधिक दुखी हो जाती। इसपर माता पार्वती ने उन्हें समझाया और कहा कि विधाता का रचा हुआ टाला नहीं जा सकता। परमात्मा का लिखे हुए को मिटाना हमारे वश में नहीं है तो उसकी मर्जी को समझ लीजिए। पर्वतराज और मैना देवी को दुखी देखकर नारद जी ने उन्हें इस विवाह से जुड़ी सारी व्याख्यान कर दी। उन्होंने भगवान शिव और माता पार्वती के पूर्वजन्म की कथा सुनाकर सबको इस मंगल अवसर के बारे में समझाया। नारद जी ने भगवान शिव को सही स्वरूप समझाकर उनके गुणों और शक्तियों की चर्चा की। नारद जी से ज्ञान प्राप्त कर हिमालय और रानी मैना समझ गए और विवाह का मंगल कार्य उत्सुकता से संपन्न किया। इस दिन के बाद शिव-शक्ति सदा के लिए एक हो गए।
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